लल्ली 18 साल की थीं, जब उनकी शादी दो साल बड़े व्यक्ति से हुई थी। यह शादी मध्य प्रदेश के झाबुआ में सामान्य रूप से होने वाली अरेंज मैरिज थी, जिसमें 200 से ज्यादा लोग मौजूद थे। जैसा कि ज्यादातर गांव में रहने वाले लोगों के साथ होता है, शादी के एक साल पूरे होने से पहले ही लोगों ने उनसे एक बच्चे के लिए पूछना शुरू कर दिया। वह शुरू में शर्माती थी, लेकिन धीरे-धीरे सवाल का सामना करना उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गया। कुछ वक्त बाद तो लोगों ने उन्हें ताना मारना शुरू कर दिया और उन्हें बार बार यह याद दिलाते रहे हैं कि वह बांझ (इनफर्टाइल) थी।
उनकी शादी के पहले पांच साल मुश्किल थे, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, बच्चे न होने कारण यह और मुश्किल हो गया। जब लल्ली लगभग 26 साल की थी, तब उसे और उसके पति को उनके बड़े भाई ने अपने बेटे को गोद देने की बात कही, जो उस समय लगभग सात साल की थी। लल्ली ने प्रेगनेंट होने की ख्वाहिश छोड़ दी थी और भाई के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था, उसने सोचा इससे उसे कम ताने कम मिलेंगे।
उन्होंने रंजन को गोद लिया, एक प्यारा सा लड़का, जिसकी आंखें हर बार झपकती थी, जब उससे पूछा जाता था कि उसे अपनी नई माँ कैसी लगी। वह बस मुस्कुराता था और इससे लल्ली को भी अच्छा लगता था। यह इस बात का सबूत था कि वह एक अच्छी मां हो सकती है। लल्ली के पति शांताराम खुश थे, घर में एक बच्चा है, एक पत्नी जो अचानक माँ बन गई, खुशी और हँसी भरपूर, वह धन्य महसूस कर रहे थे।
लल्ली ने रंजन को अपनी क्षमता के हिसाब से अच्छी तरह पाला, लगभग पूरे एक दशक तक उसने बहुत से लोगों को खुद के बच्चे के साथ प्रेगनेंट नहीं होने के लिए उस पर दया दिखाते हुए सुना। रंजन बड़ा हुआ और 25 साल की उम्र में उसकी शादी हो गई। लल्ली की उम्र 50 के करीब थी और वह अब एक सास थी। एक दिन दोपहर में, गुजरात का एक दूर का चचेरा भाई उससे मिलने आया।
उन्होंने बेटे, उसकी शादी और उनके मां बनने में असमर्थता के बारे में बात की। उनकी चचेरी बहन माया ने खुल कर लल्ली से उसके मासिक धर्म को लेकर बात की। लल्ली ने कहा कि वह मेनोपॉज के करीब है। तभी माया ने उसे गुजरात के आणंद के एक अस्पताल के बारे में बताया, जहाँ वह प्रेगनेंट होने के लिए कोशिश कर सकती थी और बच्चा पैदा कर सकती थी। लल्ली ने अचानक सोचा, 50 के करीब?। लेकिन माया अडिग थी। उसने उसे अस्पताल के बारे में बताया और लल्ली में माँ बनने की इच्छा जगाई! यह बिलकुल नामुमकिन सा था, खासकर तब जब लल्ली के पीरियड्स बंद हो गए थे। साथ ही यह बात कि वह अब एक सास थी। इस ख्वाहिश के पूरा होने से उसकी जिंदगी बदल सकती थी।
लल्ली और शांताराम ने अस्पताल में डॉक्टर से मुलाकात की। उनके मासिक धर्म चक्र को दोबारा लाना मुमकिन था। बिना पलक झपकाए उसने एक बार फिर बच्चे के लिए कोशिश की और अपनी इच्छा पूरी करने का फैसला किया। उसका इलाज शुरू हुआ। शादी के 30 से ज्यादा सालों के बाद लल्ली गर्भवती हुई और 51 साल की उम्र में माँ बन गई। उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था और विज्ञान ने उसकी इच्छा को सच कर दिया। ऐसा कहा जाता है कि कभी हार नहीं मानना चाहिए।