लोग अक्सर पीसीओएस और पीसीओडी को एक दूसरे की जगह पर इस्तेमाल करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे दोनों में फर्क नहीं जानते हैं। ये दोनों कंडीशन अलग हैं और समान भी हैं। उनमें से एक समानता यह है कि दोनों में हार्मोनल असंतुलन होता हैं, और ये दोनों ओवरी को प्रभावित करती हैं। दोनों कंडीशन के बीच फर्क को समझने के लिए पहले यह जानना होगा कि ये क्या है।
पीसीओएस तब होता है जब ओवरी कई छोटे सिस्ट, या फ्लूड से भरी थैली विकसित कर लेती है। ये सिस्ट नुकसानदायक नहीं होती, लेकिन ये हार्मोन के स्तर में असंतुलन पैदा करती है। पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं को अनियमित पीरियड्स या पीरियड्स मिस हो सकते हैं। पीसीओएस से पीड़ित महिलाएं ज्यादा मात्रा में एंड्रोजन बनाती हैं, जिसे पुरुष हार्मोन भी कहा जाता है, इससे ठोड़ी (चिन) और स्तनों पर बाल जैसे लक्षण आम हैं।
पीसीओडी एक ऐसी कंडीशन है जिसमें ओवरी बढ़ी हो जाती है। ये ओवरी बहुत ज्यादा संख्या में अपरिपक्व (इमैच्योर) एग रिलीज करती है, जो आखिर सिस्ट में बदल जाते हैं। इससे पेट का वजन बढ़ना, बांझपन, गंजापन और अनियमित मासिक धर्म होता है। पीसीओडी से भी पुरुष हार्मोन (एंड्रोजन) बनता है
पीसीओडी पीसीओएस की तुलना में ज्यादा आम है। पीसीओडी से पीड़ित महिलाओं को प्रेगनेंसी कंसीव करने में बहुत कम या बिल्कुल भी मदद की जरूरत नहीं पड़ती जबकि पीसीओएस से पीड़ित महिलाओं को अतिरिक्त मदद की जरूरत हो सकती है। दोनों कंडीशन में जांच की जरूरत होती है, और उन्हें मैनेज करने के लिए उचित कदम उठाए जाने चाहिए। इन दोनों का इलाज डाइट में बदलाव, लाइफस्टाइल में बदलाव और दवाओं से किया जा सकता है।