एंग्जायटी के साथ मेरा सफर मुश्किल रहा है। अब से पहले मैं वाकई में नहीं जानती थी कि एंग्जायटी के साथ जिंदगी जीने के बारे में किस तरह बात की जाए। मुझे अपनी सेहत से जुड़ी दूसरी समस्यांओं के बारे में बात करना आसान लगता है, इसके बजाय कि लोगों को यह समझाना कि मेरा दिमाग ओवरटाइम काम करता है। मैं हाई स्कूल में थी जब मुझे पहली बार लक्षण दिखाई दिए। मैं अपने डिबेट पार्टनर का इंतजार कर रही थी कि वह अपने शब्दों को अंतिम रूप दें, ताकि मैं स्टेज तक पहुंच सकू और उनके दिमाग को झटका दे सकूं क्योंकि मैं पूरी रात इसी डिबेट की तैयारी में लगी रही। मैं इंतजार ही कर रही थी कि अचानक मुझे बहुत ज्यादा पसीना आने लगा। मैं महसूस कर रही थी कि मेरा दिल तेज धड़कने लगा और मैं ढंग से सांस भी नहीं ले पा रही थी। मुझे लगा कि दुनिया मेरे करीब आ रही है। आखिर में मेरे बोलने की बारी भी आ गई थी और मैं अपने शरीर को कंट्रोल नहीं कर पा रही थी, इसलिए मैं हॉल से बाहर की तरफ भागी। सभी ने इसे स्टेज फियर समझा लेकिन हकीकत मैं बेहतर जानती थी। जैसे-जैसे मैं बड़ी होती गई, यह और बदतर होता गया। मेरे टेस्ट के नतीजे बहुत परेशान करने वाले थे। जिंदगी के अहम फैसलों ने मुझे लगभग पागल कर दिया था। ऐसा कई सालों तक चलता रहा, साथ ही यह और बदतर भी होता चला गया। यहां तक कि कुछ अटैक ने तुरंत मेडिकल अटेंशन के लिए मुझे इमरजेंसी रूम में भेज दिया। मुझे मालूम था कि मैं इस तरह से अपनी जिंदगी को जीना बरकरार नहीं रख सकती थी, इसलिए मैंने आखिरकार मदद तलाशना शुरू की। इस अकेले फैसले ने मेरी जिंदगी बदल दी। मैंने लक्षणों को पहचानना सीखा, मैंने दवाएं लेना शुरू की, मैंने ट्रिगर्स पहचाने और इसे रोकने के तरीके सीखे। मैं यह नहीं कहूंगी कि मुझे अब लक्षण महसूस नहीं होते हैं, लेकिन यह निश्चित रूप से अब उतने गंभीर नहीं है।